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देश के मनमोहन नहीं रहे, यादें शेष, कुछ ऐसा रहा सियासी सफर

सादगीभर जीवन जीने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे, उन्होंने गुरुवार को 92 वर्ष की आयु में दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली. नेताओं से लेकर आम लोग तक, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह से जुड़ी अपनी यादें याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं, उनसे जुड़े किस्से याद किए जा रहे हैं। 

हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी. 27 अगस्त, 2012 को संसद परिसर में यह शेर पढ़ने वाले मनमोहन हमेशा के लिए खामोश हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री पद्म विभूषण डॉ. मनमोहन सिंह ने 26 दिसंबर को दिल्ली AIIMS में अंतिम सांस ली। हमेशा आसमानी रंग की पगड़ी पहनने वाले मनमोहन ने 22 मई, 2004 को भारत के 14वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। उन्हें एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कहा गया, लेकिन मनमोहन ने न सिर्फ 5 साल का कार्यकाल पूरा किया, बल्कि अगली बार भी सरकार में वापसी की।

देश के 14वें प्रधानमंत्री रहे मनमोहन बेहद कम बोलते थे। हालांकि, आधार, मनरेगा, RTI, राइट टु एजुकेशन जैसी स्कीम्स उनके कार्यकाल में ही लॉन्च हुईं, जो आज बेहद कारगर साबित हो रही हैं। उनकी पहचान राजनेता से ज्यादा अर्थशास्त्री के तौर पर रही। देश की इकोनॉमी को नाजुक दौर से निकालने का क्रेडिट भी उन्हें दिया जाता है। कम ही लोगों को पता है कि डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री आवास में रहने के बावजूद खुद को आम आदमी कहते थे। उन्हें सरकारी BMW से ज्यादा अपनी मारुति 800 पसंद थी।

मनमोहन सिंह की यादों से  चर्चा में पाकिस्तान भी है और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का गाह गांव भी जहां मनमोहन सिंह का जन्म हुआ था।  अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गाह गांव में 26 सितंबर 1932 को जन्मे मनमोहन सिंह ने कक्षा चार तक की पढ़ाई गांव के ही प्राइमरी स्कूल से की थ।   विभाजन के बाद मनमोहन सिंह का परिवार अमृतसर आकर बस गया था। पंजाब विश्विद्यालय से उन्होंने ग्रेजुएशन और पीजी पूरा किया।  केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी और ऑक्सफोर्ड से डीफिल की।  1966 से 1969 के दौरान संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन के लिए आर्थिक मामलों के अधिकारी के रूप में चुने गए।  1971 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त हुए।  1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया।  1982 से 85 तक वे रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। 

1991 में असम से राज्यसभा सदस्य चुने गए।  इसके बाद वे  1995 ,2001 , 2007 ,2013 ,2019 में वे राजयसभा के लिए चुने गए।  2004 में अटल बिहारी सरकार ‘शाइनिंग इंडिया’ के नारे के साथ चुनाव में उतरी। 13 मई 2004 को नतीजे आए तो वोटर्स ने उन्हें नकार दिया। सत्ता की चाबी कांग्रेस की अगुआई वाली UPA के हाथों में चली गई। सोनिया गांधी उस वक्त कांग्रेस प्रेसिडेंट थीं। माना जा रहा था कि वही प्रधानमंत्री होंगी। लेकिन सोनिया गांधी पर उनके विदेशी मूल को लेकर सवाल उठाए गए थे । सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने से इनकार करने पर मनमोहन सिंह पीएम बने। 

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