MP News: आष्टा में मजबूत हुई कांग्रेस के सामने BJP के इस फार्मूले का चैलेंज, कितना पड़ेगा असर, जानिए?
(आष्टा से कमल पांचाल की रिपोर्ट)
सीहोर जिले की आष्टा विधानसभा मतदाताओं की संख्या के मामले में जिले की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है, पिछले विधानसभा की तुलना इस बार भी आष्टा विधानसभा सीट सीहोर जिले की सबसे बड़ी विधानसभा बनकर सामने आई है, जहाँ वर्तमान दौर में 2 लाख 70 हजार से ज्यादा मतदाता अपने मत अधिकार का प्रयोग इस चुनाव में करेंगे। वैसे तो आष्टा विधानसभा अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है, और जातिगत समीकरण पर नजर दौड़ाई जाए तो यह सीट बलाई (मालवीय)समाज बाहुल्य नजर आती है, और यही कारण है की 1993 के बाद से अब तक यह दोनों प्रमुख दल बलाई समाज के प्रत्याशीयों पर ही दांव आजमाते आये है, और इसी के चलते 1993 के बाद से लगातार यह बलाई समाज से भाजपा के स्वर्गीय रणजीत सिंह गुणवान चार बार और रघुनाथ सिंह मालवीय दो बार विधायक बनते आये है वही 1993 से पहले के विधानसभा चुनावों पर नजर दौड़ाई जाय तो इस सीट पर गैर बलाई ही जीतते आये थे।
1977 से 1993 तक रहा गैर बलाई प्रत्याशीयों का दबदबा, 4 बार बने विधायक
यदि आष्टा विधानसभा सीट की बात करें तो यह सीट ज़ब से अस्तित्व में आई तब से गैर बलाई समाज के प्रत्याशीयों का दबदबा देखने को मिला है, और इस विधानसभा के आकड़ो पर नजर दौड़ाई जाय तो 1977 से 1993 तक गैर बलाई समाज के प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे है। 1977 में नारायण सिंह केसरी,1980 में देवीलाल रेकवाल,1985 में कांग्रेस के अजित सिंह,1990 से 1993 तक भाजपा के नंदकिशोर खत्री विधायक रह चुके है। वहीं फिर इसके बाद से इस सीट पर बलाई मालवीय समाज के प्रत्याशी जीत दर्ज करते आये है, जिसके चलते दोनों प्रमुख दल बलाई समाज के प्रत्याशीयों को मैदान में उतराने की रणनीति पर ज्यादा जोर देते रहे।
चौहान के आने से कांग्रेस हुई मजबूत
प्रजा तांत्रिक समाधान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमल चौहान सहित हजारों कार्यकर्ताओं के आने से आष्टा विधानसभा में कांग्रेस काफी मजबूत हो चुकी है। बता दें की आष्टा विधानसभा में पिछले 5 विधानसभा चुनावों से चौहान बंधु कांग्रेस प्रत्याशीयों की जीत में बड़ा रोड़ा बनते आये है तो भाजपा को इन चौहान बंधुओ से फायदा होता आया है, लेकिन अब कमल सिंह चौहान सहित हजारों समर्थकों के आने से कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में पहुंच गई है ,
किस तरह पिछले 5 चुनावों में आष्टा विधानसभा में कांग्रेस को चौहान बंधुओ से नुकसान और भाजपा को फायदा होता आया है।
वोटो का समीकरण ऐसा है
गौरतलब है की चौहान बंधु 1998 से लगातार कांग्रेस के लिए मुसीबत तो भाजपा के लिए फायदेमंद होते आये है।
यदि वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव के आंकड़े पर नजर दौड़ाई जाय तो स्वर्गीय फूल सिंह चौहान ने 16017 मत प्राप्त किए थे,जिसके चलते भाजपा के स्वर्गीय रंजीत सिंह गुणवान ने कांग्रेस के बापूलाल मालवीय को 8000 हज़ार मतों से हराया था। वहीं वर्ष 2003 विधानसभा चुनाव में बीएसपी के चुनाव चिन्ह हाथी के टिकट से लड़े फूल सिंह चौहान को बलाई मालवीय समाज का बड़ा समर्थन मिला और 34395 मत प्राप्त किये थे, जिसके कारण भाजपा के रघुनाथ सिंह मालवीय ने कांग्रेस के अजीत सिंह को 11 हजार से मतों से पराजित किया था, और तब स्वर्गीय फूल सिंह चौहान का वोट प्रतिशत 25 .57 पर पहुंच गया था. वही इसके बाद वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में स्वयं की प्रजा तांत्रिक समाधान पार्टी के बैनर तले कमल सिंह चौहान ने 18644 मत प्राप्त किये थे, और भाजपा के स्वर्गीय रंजीत सिंह गुणवान ने इस चुनाव में कांग्रेस के गोपाल इंजिनियर को 17 हजार से ज्यादा मतों से हराया था,
तो वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में 13382 मत प्राप्त हुऐ थे और पुनः भाजपा के स्वर्गीय रंजीत सिंह गुणवान
ने कांग्रेस के गोपाल को 5500 से मतों से हराया था.
वही बीते 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कमल सिंह चौहान को 17577 वोट प्राप्त हुए थे जिसके चलते भाजपा के रघुनाथ सिंह मालवीय ने कांग्रेस के गोपाल इंजिनियर को 6 हज़ार मतों से तीसरी बार पटखनी दी थी,लिहाजा इन पिछले 5 विधानसभा चुनावों के आकड़ो पर भाजपा गौर करें तो कमल सिंह चौहान के कांग्रेस में जाने से जहाँ कांग्रेस की राह आसान होगी तो भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी होगी.
इस फार्मूले पर भाजपा मजबूत
जिस तरह से आष्टा विधानसभा में कांग्रेस मजबूत दिखाई दे रही है, और 38 वर्षो बाद जीत का स्वाद चखने को बेताब है तो वहीं भाजपा के लिए विजयी प्रत्याशी को मैदान में उतारने की चुनौती है, लिहाजा इस बार भाजपा का केंदीय संगठन भी किसी प्रकार की गलती करने के मूड में नहीं है। यदि आष्टा विधानसभा में दावेदारों पर नजर डालें तो सोमवार को जारी हुई 57 प्रत्याशीयो की चौथी सूची में ऐलान ना होने के चलते वर्तमान विधायक रघुनाथ मालवीय का टिकट लगभग कटा हुआ माना जा रहा है। ऐसे में भाजपा के पास सोनू गुणवान और कांग्रेस के टिकट से तीन बार पराजित हुए जिला पंचायत अध्यक्ष गोपाल इंजीनियर है, जिनकी फिलहाल कांग्रेस के कमल सिंह चौहान के सामने बलाई मालवीय समाज पर अपनी पकड़ मज़बूत दिखाईं नही देते है।
ऐसे में भाजपा गैर बलाई मालवीय समाज के कैलाश बगाना को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारती है तो भाजपा के लिए यह बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। ऐसा राजनीति के जानकारों का मानना है। कांग्रेस यदि बलाई मालवीय समाज पर जोरदार पकड़ रखने वाले कमल सिंह चौहान को चुनाव लड़ाती है, तो गैर बलाई मालवीय समाज के प्रत्याशी को चुनाव लड़ाना भाजपा के लिए कारगार साबित होगा, और वर्तमान हालत में जांगड़ा समाज से ताल्लुक रखने वाले कैलाश बगाना इस फार्मूले पर फिट बैठते है।
वही रोचक बात देखेगे तो 1990 के विधान सभा चुनाव में बलाई मालवीय बाहुल्य सीट पर भाजपा के गैर बलाई प्रत्याशी नंद किशोर खत्री ने कांग्रेस के बलाई मालवीय प्रत्याशी बापूलाल मालवीय को 13 हज़ार मतों के बड़े अंतर से हराया था, लिहाजा इस बार कांग्रेस के कमल सिंह चौहान से भाजपा को यह सीट बचाना है तो गैर बलाई मालवीय समाज के प्रत्याशी को ही मैदान में उतराना होगा। खैर यह भाजपा का संगठन तय करेगा की इस सीट को बचाने के लिए क्या खास रणनीति बनाई जाती है।