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MP: आदिवासी वोट बैंक पर BJP और कांग्रेस की नजर, किसे मिलेगा साथ, जानिए

लोकसभा चुनाव की बेला में आदिवासी एक बार फिर केंद्र में आ गए हैं। मध्य प्रदेश की सियासत में आदिवासी वर्ग का अहम रोल है। 11 सीटों पर एसटी वर्ग का सीधा प्रभाव है। दोनों प्रमुख दलों की इस बड़े वर्ग पर हर चुनाव में नजर रहती है। चुनाव की इस बेला में आदिवासी एक बार फिर केंद्र में आ गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले जबलपुर से महाकौशल क्षेत्र के आदिवासी बेल्ट को साधने की कोशिश की है। दूसरी बार के दौरे में वे बालाघाट पहुंचे। कांग्रेस से राहुल गांधी आदिवासी बहुल मंडला और शहडोल लोकसभा सीट पर पहुंचे हैं। उन्होंने तीन जगह सभा की। अब आने वाली 15 अप्रैल को प्रियंका गांधी सतना में चुनाव प्रचार करेंगी। इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शहडोल का दौरा कर चुके हैं।

दरअसल, मध्यप्रदेश की सियासत में आदिवासी वर्ग का अहम रोल है। 11 सीटों पर एसटी वर्ग का सीधा प्रभाव है। दोनों प्रमुख दलों की इस बड़े वर्ग पर हर चुनाव में नजर रहती है। अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक सर्वे के अनुसार, इस लोकसभा चुनाव में एसटी बहुल सीटों पर बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए मिशन-29 यानी सभी 29 सीटें जीतने का दावा कर रही BJP की चिंता बढ़ गई है। संयुक्त मध्य प्रदेश के दौर में भी 1990 में बीजेपी की सरकार सिर्फ आदिवासी सीटों के भरोसे बनी थी. 1993 और 1998 में जब यही वोट बैंक कांग्रेस में चला गया तो कांग्रेस की सरकार बनी.

2003 चुनाव में अदिवासी बीजेपी के साथ आए, तब प्रदेश में आदिवासी सीटों की संख्या 41 थी, जिनमें से बीजेपी को 34 और कांग्रेस को सिर्फ दो सीट मिली थी. परिसीमन के बाद 2008 के चुनाव में अजा सीट 47 हो गई, लेकिन बीजेपी के खाते में 29 सीट आई. इस चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं. 2013 के चुनाव में बीजेपी को 31 और कांग्रेस को 15 सीटें मिलीं।

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