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हुकमचंद मिल के मजदूरों को मिला न्याय, संघर्ष की कहानी दादा दयालु की जुबानी

आखिरकार वो दिन आ ही गया, जब हुकमचंद मिल मजदूरों ने अपने संघर्ष की लड़ाई को जीत लिया है. वहीं मिल मजदूरों की इस लड़ाई में बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और दादा दयालु यानि एमएलए रमेश मेंदोला ने भी खूब संघर्ष किया है, जिसके पीछे का कारण वो दर्द था, जो मजदूरों के साथ-साथ मजदूरों के इन दोनों बेटों ने भी सहा है. वहीं अब मिल मजदूरों को न्याय मिल रहा है, तो मिल मजदूरों के इन बेटों की आंखे भी नम हैं, जिन्होंने मिल क्षेत्र से निकलकर अब सियासत में अपनी अलग छाप छोड़ी है.

हुकमचंद मिल इंदौर की उस जमाने की सबसे आधुनिक और सबसे बड़ी टैक्सटाइल मिल थी। इसकी स्थापना 21 करोड़ रुपए की पूंजी के साथ 1915 में सर सेठ हुकमचंद ने की थी। 80 के दशक में मिल की हालत बिगड़ी और धीरे-धीरे बंद हो गई। इसके 4 हजार से ज्यादा श्रमिक पेंशन-भत्ते की राशि के लिए भटक रहे थे, जिन्हें अब न्याय मिला है, इसका परिसर 100 एकड़ में फैला है, जो अब सरकार ने अपने पास रख, इसका पूरा पैसा मजदूरों को देने का फैसला लिया है.

इंदौर की विधानसभा 2 प्रदेश की एक मात्र ऐसी विधानसभा है, जिसमें मिलों का सर्वाधिक हिस्सा आता है, फिर चाहे बात हुकुमचंद मिल की हो या मालवा मिल की, वहीं मिल बंद हो जाने के बाद मजदूरों के साथ पेंशन और भत्ते की राशि के लिए सर्वाधिक संघर्ष जनप्रतिनिधियों ने भी किया, जहां वर्तमान में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला का परिवार भी एक वक्त मिल में ही मजदूरी किया करता था. यही कारण रहा की, दोनों ही नेताओं ने मजदूरों का दर्द समझते हुए मजदूरों के न्याय की लड़ाई सड़क से लेकर सदन तक लड़ी.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी के जन्मदिवस सुशासन दिवस पर इंदौर के कनकेश्वर धाम में हुकुमंचद मिल के मजदूरों को उनका हक देने का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली जुड़ेंगे और मजदूरों को संबोधित करेंगे।

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